भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मिसाल इसकी कहाँ है / जावेद अख़्तर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:33, 24 जून 2009 का अवतरण
मिसाल इसकी कहाँ है ज़माने में
कि सारे खोने के ग़म पाये हमने पाने में
वो शक्ल पिघली तो हर शै में ढल गई जैसे
अजीब बात हुई है उसे भुलाने में
जो मुंतज़िर न मिला वो तो हम है शर्मिंदा
कि हमने देर लगा दी पलट के आने में
लतीफ़ था वो तख़ैय्युल से, ख़्वाब से नाज़ुक
गवा दिया हमने ही उसे आज़माने में
समझ लिया था कभी एक सराब को दरिया
पर एक सुकून था हमको फ़रेब खाने में
झुका दरख़्त हवा से, तो आँधियों ने कहा
ज़ियादा फ़र्क़ नहीं झुक के टूट जाने में