भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं जब / सुतिन्दर सिंह नूर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:39, 12 अप्रैल 2010 का अवतरण
मैं जब
तेरे अंगों में उतर गया
मुझे घोंसलों में
चहचहाते पक्षी
और
आँखें खोलतीं नर्म कोमल पत्तियाँ
बहुत प्यारी लगने लगीं।
0
जब मैं
तेरे दो झीलों वाले शहर में आया
तफ़ान मेरी आँखों में जागे
और हंस
उन झीलों में डूब गए।
0
जो सूर्य
तुम से बिछुड़ते हुए
तेरे शहर में
डूब गया था
वही सूर्य मैं
इस शहर में ढूँढ़ रहा हूँ।
मूल पंजाबी भाषा से अनुवाद : सुभाष नीरव