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ओ मेरे पिता (समर्पण) / एकांत श्रीवास्तव
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मायावी सरोवर की तरह
अदृश्य हो गये पिता
रह गये हम
पानी की खोज में भटकते पक्षी
ओ मेरे आकाश पिता
टूट गये हम
तुम्हारी नीलिमा में टॅंके
झिलमिल तारे
ओ मेरे जंगल पिता
सूख गये हम
तुम्हारी हरियाली में बहते
कलकल झरने
ओ मेरे काल पिता
बीत गये तुम
रह गये हम
तुम्हारे कैलेण्डर की
उदास तारीखें
हम झेलेंगे दुःख
पोंछेगे ऑंसू
और तुम्हारे रास्ते पर चलकर
बनेंगे सरोवर, आकाश, जंगल और काल
ताकि हरी हो घर की एक-एक डाल.
--Pradeep Jilwane 09:48, 24 अप्रैल 2010 (UTC)