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सूखा / एकांत श्रीवास्तव

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इस तरह मेला घूमना
हुआ इस बार
न बच्‍चे के लिए मिठाई
न घरवाली के लिए टिकुली-चूड़ी
न नाच न सर्कस

इस बार जेबों में
सिर्फ हाथ रहे
उसका खालीपन भरते

इस बार मेले में
पहुंचने की ललक से पहले पहुंच गयी
लौटने की थकान

एक खाली कटोरे के सन्‍नाटे में
डूबती रही मेले की गूंज

सिर्फ सूखा टहलता रहा
इस बार मेले में.


--Pradeep Jilwane 10:49, 24 अप्रैल 2010 (UTC)