भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छलावा

Kavita Kosh से
Vpkamble (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:59, 2 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: आप अकेले हैं और भीड जुटानी हैं दाने फेंक दो मुर्गियों की भीड आपके…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


आप अकेले हैं और भीड जुटानी हैं दाने फेंक दो मुर्गियों की भीड आपके दरवाजे पर हाजिर होगी। मालूम नहीं दुनिया का दस्तुर दाने फेंकना कला है या दाने चुगना कला हैं, यह मत सोचों दाने किसके हैं? चुगनेवाले कौन है? या आँगन किसका है? इश्तहार की दुनिया में बाजार लगा है बिकनेवालों का, कितनी मुर्गियाँ कौनसे आँगन में किसके दाने चुग रही हैं? वैसे दाने और मुर्गी की उमर बहुत छोटी हैं छलावा एक कला है, छल करनेवालों की उमर बहुत लंबी होती हैं।