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बरखा का एक दिन / अनातोली परपरा
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हवा बही जब बड़े ज़ोर से
बरसी वर्षा झम-झमा-झम
मन में उठी कुछ ऐसी झंझा
दिल थाम कर रह गए हम
गरजे मेघा झूम-झूम कर जैसे बजा रहे हों साज ता-ता थैया नाचे धरती ख़ुशियाँ मना रही वह आज
भीग रही बरखा के जल में तेरी कोमल चंदन-काया मन मेरा हुलस रहा, सजनी घेरे है रति की माया </poem>