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१९६२-१९६३ की रचनाएँ / हरिवंशराय बच्चन
Kavita Kosh से
- सूर समर करनी करहिं / हरिवंशराय बच्चन
- उधरहिं अंत न होइ निबाहू / हरिवंशराय बच्चन
- गाँधी / हरिवंशराय बच्चन
- युग-पंक : युग-ताप / हरिवंशराय बच्चन
- गत्यवरोध / हरिवंशराय बच्चन
- शब्द-शर / हरिवंशराय बच्चन
- लेखनी का इशारा / हरिवंशराय बच्चन
- विभाजितों के प्रति / हरिवंशराय बच्चन
- भिगाए जा, रे... / हरिवंशराय बच्चन
- दिये की माँग / हरिवंशराय बच्चन
- दो बजनिए / हरिवंशराय बच्चन
- [[खून के छापे
(एक स्वप्न : एक समीक्षा) / हरिवंशराय बच्चन]]