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चुपके से कोई कहता है / शमशेर बहादुर सिंह

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चुपके से कोई कहता है : शाइर नहीं हूँ मैं ।

क्यों अस्ल में हूँ वो जो बज़ाहिर नहीं हूँ मैं ।


भटका हुआ-सा फिरता है दिल किस ख़याल में

क्या जादए-वफ़ा का मुसाफ़िर नहीं हूँ मैं ?


क्या वसवसा है, पा के भी तुमको यक़ीं नहीं

मैं हूँ जहाँ वहीं भी तो आख़िर नहीं हूँ मैं ।


सौ बार उम्र पाऊँ तो सौ बार जान दूँ

सदक़े हूँ अपनी मौत पे काफ़िर नहीं हूँ मैं ।


(रचनाकाल :1971)