भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरा मस्तक लज्जा से झुक जाता है / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:24, 29 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=व्यक्ति बनकर आ / गुलाब खंडेलव…)
मेरा मस्तक लज्जा से झुक जाता है
जब कोई मुझसे कहता है
की तेरा पिता
जो सात आसमानों के ऊपर रहता है
इतना छोटा कैसे हो गया था
कि अपनी सृष्टि नापने के लिए
उसे दो पग चलना पड़ा!
एक भोले-भाले भक्त को छलना पड़ा!
बहुरुपिए की तरह रूप बदलना पड़ा!