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हमारा समय / मुकेश मानस

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साँचा:KKrachna

हमारा समय

खिड़कियां खटखटाई जा रही हैं
हम नहीं सुनते

दरवाजे भड़भड़ाए जा रहे हैं
हम नहीं खुलते

लोग हर सिम्त मारे जा रहे हैं
हम नहीं उठते

इंसानियत का बरतन खाली धरा है
मरते हुए जीना
हमारे समय का
सबसे क्रूरतम मुहावरा है
1994