भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बस गवैया / मुकेश मानस

Kavita Kosh से
Mukeshmanas (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:19, 4 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna}} <poem> बस गवैया चलती बस की खड़ी भीड़ में देखो बच्चा चूमता ह…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बस गवैया


चलती बस की खड़ी भीड़ में
देखो बच्चा चूमता है
चूमता है दोनों हाथ
चूमता शीशे की पट्टियां
सूखा गला साफ करता है
होठों पर जीभ फिराता है
वह शुरू करेगा अब कोई गीत

दिन भर वह गा सके मधुरतम
यात्रियों को लुभा सके उसकी आवाज़
निकलें गीत पेट से उसके
आओ बंधू दुआ करें
1991