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काहे करी सगाई बाबा / राजेन्द्र स्वर्णकार

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हमसे कौन लड़ाई बाबा ?
हो अब तो सुनवाई बाबा !

सबकी सुनता ; हमरी अब तक
बारी क्यों न आई बाबा ?

हमसे नाइंसाफ़ी करते '
तनिक रहम न खाई बाबा ?

इक बारी मं कान न ढेरे
कितनी बार बताई बाबा ?

बार-बार का बोलें ? सुसरी
हमसे हो न ढिठाई बाबा !

नहीं अनाड़ी तुम कोई; हम
तुमको का समझाई बाबा ?

दु:ख से हमरा कौन मेल था,
काहे करी सगाई बाबा ?

बिन बेंतन ही सुसरी हमरी
पग-पग होय ठुकाई बाबा !

तीन छोकरा, इक घरवाली,
है इक हमरी माई ; बाबा !

पर… इनकी खातिर भी हमरी
कौड़ी नहीं कमाई बाबा !

बिना मजूरी गाड़ी घर की
कैसन बता चलाई बाबा ?