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मैं तो मकतल में भी / फ़राज़

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मैं तो मकतल में भी किस्मत का सिकंदर निकला
कुर्रा-ए-फाल मेरे नाम का अक्सर निकला

था जिन्हे जों वोह दरया भी मुझी मैं डूबे
मैं के सेहरा नज़र आता था समंदर निकला

मैं ने उस जान-ए-बहारां को बुहत याद किया
जब कोई फूल मेरी शाख-ए-हुनर पर निकला

शहर वल्लों की मोहब्बत का मैं कायल हूँ मगर
मैं ने जिस हाथ को चूमा वोही खंजर निकला