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ख़ास ज़ुबानी कहता है / विजय वाते
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द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:36, 19 जून 2010 का अवतरण
वो तो सब की राम कहानी कहता है |
लेकिन अपनी ख़ास ज़ुबानी कहता है |
रुक पाया कब जीवन दुःख के टीलों पर,
चढ़ी नदी से खारा पानी कहता है|
स्याना मानुस ऊँची कुर्सी ओहदे को,
ताश का राजा, ताश की रानी कहता है|
शेर ग़ज़ल का जब भी अच्छा होता है,
उलझी बातें सरल बयानी कहता है |
इक शायर है "विजय" जो अपनी ग़ज़लों में,
सब की जानी और पहचानी कहता है |