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दर्द / नीरज दइया

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दर्द के सागर में मैं डूबता तिरता हूं कोई नहीं थामता मेरा हाथ ।

मैं नहीं चाहता मेरी पीड़ा का बखान पहुंचे आप तक या उन तक ।

लेकिन कोई चारा भी नहीं है मेरे दर्द का साक्षी है मेरा शब्द-शब्द ।

अनुवाद : मदन गोपाल लढ़ा