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हद / लीलाधर जगूड़ी
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क़सम खाए बिना
जहाँ किसी बात को सच न माना जाए
और उसके बाद भी
सचाई सन्दिग्ध हो
जहाँ क़ानून को भी यक़ीन न हो
और अपराधी को भी
वहाँ घबराना स्वाभाविक है
तब तो और भी ज़्यादा
जब कोई हद हो
जैसे कि- मौत।