भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कहानी / नरेन्द्र जैन
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:48, 29 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेन्द्र जैन |संग्रह=तीता के लिए कविताएँ / नरेन...)
उन्होंने कहा
वे सपने देखते हैं
जंगल में कोई जानवर कभी
सपना नहीं देखता
याचक-सी उनके आस-पास
मँडराती दुनिया को वे हर मोड़
पर तसल्ली देते हैं
'हम जो हैं तुम्हें आगे बढ़ाएंगे'
वह कम्बख़्त
एक क़दम आगे बढ़ती है
दस क़दम पीछे हटती है
एक सपने की ख़ातिर
औरत अपने गर्भ में
बच्चे को बढ़ता हुआ देखती है