भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वर्तमान / संतोष मायामोहन

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:07, 17 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>मां मेरे पास बैठी बीन रही है धनिये के दाने ( तिनके, कंकड़ ) कर रही …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मां
मेरे पास बैठी
बीन रही है धनिये के दाने
( तिनके, कंकड़ )
कर रही है भावों-अभावों की गणना
सआत- सआत ।
मां,
हर महीने लाती है
महीने भर का राशन
और हर महीने दोहराती है
यही की यही बात ।

अनुवाद : मोहन आलोक