भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अस्तित्व का स्वाद / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:24, 15 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>प्याज के छिलकों की तरह जीवन के दिन, उतरते... उतरते.... चले गये, और म…)
प्याज के छिलकों की तरह
जीवन के दिन,
उतरते... उतरते....
चले गये,
और मैं
भीतर की
अन्तिम पर्त मात्र रह गया हूं
फिर भी लोग,
न जाने क्यूं मुझे
अपनी आहार सामग्री में रखते हैं ।
समय,
असमय
सुबह
और शाम
मेरे अस्तित्व का
स्वाद चखते हैं।