Last modified on 20 जुलाई 2010, at 11:13

गहरी साजिश / मनोज श्रीवास्तव

Dr. Manoj Srivastav (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:13, 20 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= मनोज श्रीवास्तव |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> ''' गहरी साज…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


गहरी साजिश


गहरी साजिश खेली जा रही है
साध्वी पृथ्वी के खिलाफ,
प्रकाश मार्गों से
एलियनों के दस्ते भेजे जा रहे हैं,
ख्यालगाह की उड़न तश्तरियाँ
स्थूलरूप धारण कर
हमारी टोह लेने लगी हैं,
इस अप्रत्याशितता में
हमारा अमन-चैन रेत हो गया है,
हम अपने बदन टटोल कर भी
शुष्क अन्तरिक्ष में जीवन की लालसा में
सदियों से गुम अपने होश नहीं ढूंढ पा रहे हैं
जबकि यह तय है कि
इस जमीन पर बचे-खुचे आक्सीजन से
अन्तरिक्ष के निर्वात सीने में
जान नहीं फूंकी जा सकती है,
खगोलीय कंकालों को
वैदिक मंत्रों
या वैज्ञानिक प्रयोगों से
नहीं जिलाया जा सकता है.