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रजनी व्यतीता/ शास्त्री नित्यगोपाल कटारे
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रजनी व्यतीता भवने सभीता .।
एकाकिनी गृहे गहनान्धकारे मग्नाहमासम् क्लेशे अपारे निद्रां न नीता .। रजनी व्यतीता ।।
कामेन मुग्धा विरहाग्नि दग्धा रात्रिर्समस्ता शान्तिर्न लब्धा नयनाश्रु पीता। रजनी व्यतीता ।।
आगतो न कन्तः आगतो बसन्तः मम वेदनायाः दृश्यते न अन्तः युवता अतीता । रजनी व्यतीता।।