भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धुंधलका / अशोक लव
Kavita Kosh से
Abha Khetarpal (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:36, 3 अगस्त 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKRachna |रचनाकार=अशोक लव |संग्रह =लड़कियाँ छूना चाहती हैं आसमान }} <poem> म…)
मित्र !
जब धुंध जब इतनी घिर जाये
कि शीशे के पार कुछ दिखाई ना दे
तब -
हथेलियों से शीशे को पोंछ लेना
फिर
शीशे के पार देखना
सब कुछ साफ़ साफ़ दिखने लगेगा
मैं तो वहीँ खड़ा था
जहाँ अब दिखाई देने लगा हूँ
सिर्फ धुंध ने तुम्हे
बहका रखा था