भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

और भी दूँ / रामावतार त्यागी

Kavita Kosh से
Tusharmj (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 00:44, 20 मई 2007 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रचनाकार:रामावतार त्यागी


~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~


मन समर्पित, तन समर्पित,

और यह जीवन समर्पित।

चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।


मॉं तुम्‍हारा ऋण बहुत है, मैं अकिंचन,

किंतु इतना कर रहा, फिर भी निवेदन-

थाल में लाऊँ सजाकर भाल में जब भी,

कर दया स्‍वीकार लेना यह समर्पण।

गान अर्पित, प्राण अर्पित,

रक्‍त का कण-कण समर्पित।

चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।


मॉंज दो तलवार को, लाओ न देरी,

बॉंध दो कसकर, कमर पर ढाल मेरी,

भाल पर मल दो, चरण की धूल थोड़ी,

शीश पर आशीष की छाया धनेरी।

स्‍वप्‍न अर्पित, प्रश्‍न अर्पित,

आयु का क्षण-क्षण समर्पित।

चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।


तोड़ता हूँ मोह का बंधन, क्षमा दो,

गॉंव मेरी, द्वार-घर मेरी, ऑंगन, क्षमा दो,

आज सीधे हाथ में तलवार दे-दो,

और बाऍं हाथ में ध्‍वज को थमा दो।


सुमन अर्पित, चमन अर्पित,

नीड़ का तृण-तृण समर्पित।

चहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।