भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुक्ति / ओम पुरोहित ‘कागद’

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:10, 31 अगस्त 2010 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घर खाली होने के कारण
दहेज न दे पाने के कारण
दु:ख बांटने
बिरमली की लाश
ससुराल से आई देख
दूसरी जवान बेटी को
लग्र मंडप से उठा
अग्रि के फेरों की बजाय
अग्रि के घेरों में डाल
तीसरी का घांटा मोस
मौन खड़ा है दीपला
जीवन भर की
राड़ खत्म कर
पित्र दायित्व से मुक्त
होंठों पर
मंद-मंद मुस्कान
तालू से चिपके
धीर-गम्भीर शब्द
न रहा बांस
न बजेगी बांसुरी
आओ!
अब दो भले ही आवाज
इक्कीसवीं सदी में जाने को
दीपला तैयार है!