भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ढाई आखर / ओम पुरोहित ‘कागद’

Kavita Kosh से
Ankita (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:13, 30 अगस्त 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम पुरोहित कागद |संग्रह=आदमी नहीं हैं / ओम पुरोह…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उस ने
वह पूरी किताब पढ़ ली
अब वह
पूरी किताब है
मगर
उसे
आज तक
कोई पाठक नहीं मिला।

उस ने
जो किताब पढ़ी थी
उसे अब तक
दीमक चाट चुकी होगी
लेकिन
वह दीमक के लिए नहीं है
खुल जाएगा
एक दिन
सब के सामने
और
बंचवा देगा
अपने ढाई आखर सब को।