भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जिस किसी का सूरज से सिलसिला निकलता है / सर्वत एम जमाल
Kavita Kosh से
Alka sarwat mishra (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:54, 5 सितम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna}} रचनाकार=सर्वत एम जमाल संग्रह= …)
रचनाकार=सर्वत एम जमाल संग्रह= }} साँचा:KKCatGazal
जिस किसी का सूरज से सिलसिला निकलता है
बस वही चिरागों को रौंदता निकलता है
बस्तियों के जंगल में आदमी नहीं मिलते
आजकल जिसे देखो देवता निकलता है
पास वाले झुरमुट में लाशें मिलती हैं अक्सर
गाँव वाले कहते हैं भेड़िया निकलता है
उम्र बीत जाती है सिर्फ़ यह समझने में
चक्रव्यूह से कैसे रास्ता निकलता है
जश्न है, खमोशी है, सब पड़े हैं सजदे में
इस डगर से राजा का काफिला निकलता है
तू सुलगता रहता है कौन आग में सर्वत