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प्रयाण-गीत / सोहनलाल द्विवेदी

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न हाथ एक शस्त्र हो न साथ एक अस्त्र हो
न अन्न नीर वस्त्र हो,
हटो नहीं, डटो वहीं, बढे चलो बढे चलो ।


रहे समक्ष हिम शिखर, तुम्हारा पर्ण उठे निखर
भले ही जाय तन बिखर,
रुको नहीं, झुको नहीं, बढे चलो बढे चलो ।


घटा घिरी अटूट हो अधर में कालकुट हो
वही अमृत का घूंट हो
जिये चलो मरे चलो, बढे चलो बढे चलो ।


गगन उगलता आग हो, छिड़ा मरण का राग हो,
लहू का अपने फ़ाग हो
अड़ो वहीं, गड़ो वहीं, बढे चलो बढे चलो ।


चलो नई मिसाल हो, जलो नई मशाल हो,
पढो नया कमाल हो
रुको नहीं, झुको नहीं, बढे चलो बढे चलो ।


अशेष रक्त तोल दो, स्वतंत्रता का मोल दो,
कडी युगों की खोल दो,
डरो नहीं, मरो वहीं, बढे चलो बढे चलो ।।