भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अलविदा... / संकल्प शर्मा

Kavita Kosh से
Abha Khetarpal (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:01, 17 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संकल्प शर्मा |संग्रह= }} {{KKCatGhazal‎}}‎ <poem> सुनो , वो वक़्…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुनो ,
वो वक़्त अब आ ही गया है ,
जिसे ना चाहती थी तुम ,
और ना मैंने चाहा था .
सुनो ,
वो वक़्त अब आ ही गया है .
मुझे मालूम है ,
ये वक़्त बिलकुल भी आसाँ नहीं होगा ,
बहुत मुश्किल से गुजरेगा ,
मुझे ये भी पता है ,
ऐसे वक़्त की खातिर
बनी हैं ,
कितनी ही रवायतें ,
आओ ना ,
एक नयी रवायत ,
हम भी बना लेते हैं ,
फिर उसे
हम भी निभा लेते हैं ,
आओ ना ,
देख लें एक दूसरे को हम
जी भर के
हमेशा से ज़रा सा और ज्यादा
और फिर ऐसा करते हैं ,
के या तो तुम
चूमने दो मुझको
तुम्हारी पलकें
इतनी शिद्दत से
के वो छपने लगें
मेरे होंठों पे
या फिर
चूम लो तुम
मेरी पलकें
इतनी शिद्दत से
के जलने लगें
तुम्हारे होंठ..
सुनो ,
ये वक़्त ए रुखसत है ,
और हमें रस्ते बदलने हैं