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उन्हीं के लिए / महेंद्र नेह
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अब
उन्हीं के लिये यह कविता
जिनके हाथों से
छीन लिये गए औजार
यह ज़िंदगी
अब
उन्हीं के लिए
जिनके मुँह से
झपट लिए गए निवाले
उन्हीं के लिए
ये आँखें
जिनके सपनों को
कुचल दिया गया
और डाल दी गई उन पर राख
ये क़लम
उन्हीं के लिए
सच्चाई और न्याय के
रास्ते पर चलने के जुर्म में
क़त्ल कर दिया गया जिन्हें
दर्ज़ कर दिया गया जिनका नाम
बगावत करनेवालों की
काली सूची में ।