भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सात कविताएँ-7 / लाल्टू

Kavita Kosh से
Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:19, 11 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाल्टू |संग्रह=लोग ही चुनेंगे रंग / लाल्टू }} <poem> म…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


मैं कौन हूँ? तुम कौन हो?
मैं एक पिता देखता हूँ पितृहीन प्राण.
ग्रहों को पार कर मैं आया हूँ
एक भरपूर जीवन जीता बयालीस की बालिग उमर
देख रहा हूँ एक बच्चे को मेरा सीना चाहिए

उसकी निश्छलता की लहरों में मैं काँपता हूँ
मेरे एकाकी क्षणों में उसका प्रवेश सृष्टि का आरम्भ है
मेरी दुनिया बनाते हुए वह मुस्कराता है
सुनता हूँ बसन्त के पूर्वाभास में पत्तियों की खड़खड़ाहट
दूर दूर से आवाज़ें आती हैं उसके होने के उल्लास में
आश्चर्य मानव सन्तान
अपनी सम्पूर्णता के अहसास से बलात् दूर
उँगलियाँ उठाता है, माँगता है भोजन के लिए कुछ पैसे.