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धर्म की चादर तान रे बन्दे / ब्रजमोहन

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धर्म की चादर तान रे बन्दे धर्म की चादर तान

रहे, रहे ना चाहे पगले तू कोई इंसान रे बन्दे...


योगी-भोगी, बाबा-साबा, संत-वंत बन जा रे

टाट-वाट का चक्कर कर के ठाठ-बाट से खा रे

भगवा जीवन करता जा तू धन को अन्तर्धान रे...


धर्म-कर्म की खुली छूट है जो चाहे सो कर ले

बाबाओं का देश निकम्मे भवसागर में तर ले

उस के नाम पे बन जा ख़ुद छोटा-मोटा भगवान रे...


कर्म किए जा सब धर्मों का है भक्तों से कहना

सब के हिस्से का फल आख़िर तेरे पास ही रहना

फल खा पेट पे हाथ फिरा और चंदन मुँह पे सान रे...