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लड़ते हुए सिपाही का गीत / ब्रजमोहन

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लड़ते हुए सिपाही का गीत बनो रे

हारना है मौत, तुम जीत बनो रे


फूलों से खिलना सीखो, पंछी से उड़ना

पेड़ों की छाँव बनके धरती से जुड़ना

पर्वत से सीखो, कैसे चोटी पर चढ़ना

गेहूँ के दानों-सी प्रीत बनो रे


जब बैठे-बैठे आँखें भर आएँ दुख से

फिर सोचना, दिन कैसे बीतेंगे सुख से

दुख की लकीरें मिट जाएंगी मुख से

सूरज-सा उगने की रीत बनो रे


माथे पर छलके भाई! जब भी पसीना

इक पल हवाओं के भी होठों पर जीना

तब देखना रे ! कैसे फूलेगा सीना

सीने में धड़के जो, संगीत बनो रे