भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दादी दांई दुनिया / नीरज दइया
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:40, 23 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>आयै दिन मंदगी मांय अधरझूल झोटा खावै है- दादी । ऐ झोटा पूरा ई’ज सम…)
आयै दिन
मंदगी मांय अधरझूल
झोटा खावै है- दादी ।
ऐ झोटा
पूरा ई’ज समझो हणै
पण मन नीं भरै दादी रो !
दादी !
थारो जीवण सूं
क्यूं है- इत्तो लगाव ?
अबै कांई रैयो बाकी
जद कै थारा टाबर ई
उफतग्या है, नाक राखता-राखता
गळी-गवाड रै डर सूं ।
भायला, दादी दांई दुनिया ई
खावै है झोटा ।