भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मायनो चावूं म्हैं / नीरज दइया
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:40, 23 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>सूरज चांद री गुड़कती दड़ियां सूं नीं रीझूंला म्हैं मयनो चावूं …)
सूरज चांद री गुड़कती दड़ियां सूं
नीं रीझूंला म्हैं
मयनो चावूं म्हैं
कै शेषनाग रै फण माथै है
का किणी बळद रै सींगां माथै
आ धरती
मायनो चावूं म्हैं
कै म्हारी जड़ां जमी मांय है
का आभै मांय किणी डोर सूं
बंध्योड़ो हूं म्हैं ।
मायनो चावूं म्हैं
कै किणी रिधरोही भटकूंला
का पंख लगा उडूंला आभै मांय
किणी बीजै री आंख सूं
मायनो चावूं म्हैं
कै किणी पुटियै काकै री टांगां माथै है
का किणी किसन री आंगळी माथै
ओ आभो
बिरखा-बादळी का इंदरधनख सूं
नीं रीझूंला म्हैं
मायनो चावूं म्हैं