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सौ-सौ जनम प्रतीक्षा कर लूं / भारत भूषण

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सौ-सौ जनम प्रतीक्षा कर लूं
प्रिय मिलने का वचन भरो तो!

पलकों पलकों शूल बुहारूं
अंसुअन सींचू सौरभ गलियां
भंवरों पर पहरा बिठला दूं
कहीं न जूठी कर दें कलियां
फूट पडे पतझर से लाली
तुम अरुणारे चरन धरो तो!

रात न मेरी दूध नहाई
प्रात न मेरा फूलों वाला
तार-तार हो गया निमोही
काया का रंगीन दुशाला
जीवन सिंदूरी हो जाए
तुम चितवन की किरन करो तो!

सूरज को अधरों पर धर लूं
काजल कर आंजूं अंधियारी
युग-युग के पल छिन गिन-गिनकर
बाट निहारूं प्राण तुम्हारी
सांसों की जंजीरें तोडं
तुम प्राणों की अगन हरो तो