भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दीदी की आँखों में / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:34, 7 नवम्बर 2010 का अवतरण
दीदी लिपस्टिक के नखरे करे ।
छुटकू डोलें मुंह में मिट्टी भरे ।
दीदी को मिली नई फूलदार साड़ी,
छुटकू को मिली तीन पहियों की गाड़ी,
दीदी कमाऊ है, फैशन करे ।
छुटकू डोलें मुँह में मिट्टी भरे ।
दीदी संभालती रहे काला चश्मा,
छुटकू चिल्लाते रहें अम्माँ ! अम्माँ !
दीदी की आंखों में सपने भरे ।
छुटकू डोलें मुँह में मिट्टी भरे ।
दीदी का सैलफ़ोन बजता ही रहता,
कोई है, जो बातें करता ही रहता,
दीदी हँस-हँस कर क्या बातें करे ?
छुटकू के पल्ले न कुछ भी पड़े ।