भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीत-विहग उतरा / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:14, 8 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |संग्रह=गीत-विहग उतरा / रमेश रंजक }} {{KKCatNav…)
हल्दी चढ़ी पहाड़ी देखी
मेंहदी रची धरा
अँधियारे के साथ पाहुना गीत-विहग उतरा ।
गाँव फूल-से गूँथ दिए
सर्पिल पगडंडी ने
छोर फैलते गए
मसहरी के झीने-झीने
दिन, जैसे बाँसुरी बजाता बनजारा गुज़रा।
पोंछ पसीना ली अँगड़ाई
थकी क्रियाओं ने
सौंप दिये मीठे सम्बोधन
खुली भुजाओं ने
जोड़ गया संदर्भ मनचला मौसम हरा-भरा।