भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भायला / तन सिंह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:05, 9 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तन सिंह |संग्रह= }} Category:मूल राजस्थानी भाषा {{KKCatKavita‎…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मत पूछे के ठाठ भायला | पोळी मै खाट भायला ।।
पनघट पायल बाज्या करती ,सुगनु चुड़लो हाथा मै ।
रूप रंगा रा मेला भरता ,रस बरस्या करतो बातां मै ।
हान्स हान्स कामन घणी पूछती , के के गुज़री रात्यां मै ।
घूंघट माई लजा बीनणी ,पल्लो देती दांता मै ।
नीर बिहुणी हुई बावड़ी , सूना पणघट घाट भायला ।
पोळी मै है खाट भायला ।।

छल छल जोबन छ्ळ्क्या करतो ,गोटे हाळी कांचली ।
मांग हींगलू नथ रो मोती ,माथे रखडी सांकली ।
जगमग जगमग दिवलो जुगतो ,पळका पाडता गैणा मै ।
घनै हेत सूं सेज सजाती ,काजल सारयां नैणा मै ।
उन नैणा मै जाळा पड़गा ,देख्या करता बाट भायला ।
पोळी मै खाट भायला ।।

अतर छिडकतो पान चबातो नैलै ऊपर दैलो ।
दुनिया कैती कामणगारो ,अपने जुग को छैलो हो ।
पण बैरी की डाढ रूपि ना, इतनों बळ हो लाठी मैं ।
तन को बळ मन को जोश झळकणो ,मूंछा हाली आंटी मै ।।
इब तो म्हारो राम रूखाळो , मिलगा दोनूं पाट भायला ।
पोळी मै खाट भायला ।।

बिन दांता को हुयो जबाडो चश्मों चढ्गो आख्याँ मै ।
गोडा मांई पाणी पडगो जोर बच्यो नी हाथां मै ।
हाड हाड मै पीड पळै है रोम रोम है अबखाई ।
छाती कै मा कफ घरडावै खाल डील की है लटक्याई ।।
चिटियो म्हारो साथी बणगो ,डगमग हालै टाट भायला ।
पोळी मै है खाट भायला ।।