भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उस दिन / शैलेन्द्र

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:51, 30 मई 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} रचनाकार: शैलेन्द्र Category:कविताएँ Category:शैलेन्द्र ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ उस ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रचनाकार: शैलेन्द्र

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~


उस दिन ही प्रिय जनम-जनम की

साध हो चुकी पूरी !


जिस दिन तुमने सरल स्नेह भर

मेरी ओर निहारा;

विहंस बहा दी तपते मरुथल में

चंचल रस धारा!

उस दिन ही प्रिय जनम-जनम की

साध हो चुकी पूरी!


जिस दिन अरुण अधरों से

तुमने हरी व्यथाएं;

कर दीं प्रीत-गीत में परिणित

मेरी करुण कथाएं!

उस दिन ही प्रिय जनम-जनम की

साध हो चुकी पूरी!


जिस दिन तुमने बाहों में भर

तन का ताप मिटाया;

प्राण कर दिए पुण्य--

सफल कर दी मिट्टी की काया!

उस दिन ही प्रिय जनम-जनम की

साध हो चुकी पूरी!


1945 में रचित