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टँगे हुए चेहरे / सूरज राय

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दिल पे दुनिया के रंजो-गम ठहरे ।
एक क़ैदी पे सैकड़ों पहरे ।।

ज़िंदगी फिर रही है बेवा-सी
सिर्फ़ मरघट पे बिक रहे सेहरे ।।

दर्द तो बेसतह समंदर है
बीच से ज़्यादा किनारे गहरे ।।

हद-ए-बर्दाश्त-ए-ग़म क्या है तेरी
ए दिल-ए-बेजुबान कुछ कह रे ।।

जब जहाँ जिसकी ज़रूरत पहनो
खूटियों पर टँगे हुए चेहरे ।।

चीख़ती हैं अमावसें दिल की
चाँद-‘सूरज’-चिराग सब बहरे ।