भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आग में आग डाल देते हैं / कुमार अनिल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:00, 22 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार अनिल |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <Poem> आग में आग डाल देते …)
{
आग में आग डाल देते हैं
आओ ख़ूँ को उबाल देते हैं
दे गए जो हमें हमारे बुज़ुर्ग
हम तुम्हें वो मशाल देते हैं
चाँद जब माँगता है अपना जवाब
हम तुम्हारी मिसाल देते हैं
तोड़ने को घमंड सूरज का
एक दिया और बाल देते हैं
हमसे जो उम्र भर सुलझ न सका
लो तुम्हें वो सवाल देते हैं
अगले पल का यक़ीं नहीं मुझको
और वो कल पे टाल देते हैं
पानी ठहरा तो सड़ ही जाएगा
आओ इसको खंगाल देते हैं