भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अरदास / मदन गोपाल लढ़ा

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:52, 29 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा |संग्रह=म्हारी पाँती री चितावां…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


तमसो मा ज्योतिगर्मय
अधंकार सूं उजाळै कांनी
बधणै री म्हारी अरदास !

बापजी !
एड़ो उजाळो
तावड़ै जैड़ो आकरो
पळपळाट करतो
चूंधी चढ़ांवतो
ओळखांण अबखी हुयगी।

थमो परमात्मा !
कांई फरक रैवैला पछै
अंधारे अर उजाळै में।

गोबर लीप्योड़ै आंगणै
जगमगांवतै
माटी रै दिवलै रो
च्यानणो चाइजै मालिक !
ठंडो अर सुवावणो
अंधारै री तासीर नै
जड़ांमूळ खिंडावतो।