भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जो रिश्ते हैं हक़ीक़त में वो अब रिश्ते नहीं होते / नित्यानन्द तुषार
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:47, 21 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नित्यानन्द तुषार |संग्रह=सितम की उम्र छोटी है / …)
जो रिश्ते हैं हक़ीक़त में वो अब रिश्ते नहीं होते
हमें जो लगते हैं अपने वही अपने नहीं होते
कशिश होती है कुछ फूलों में ,पर ख़ुशबू नहीं होती
ये अच्छी सूरतों वाले सभी अच्छे नहीं होते
वतन की जो तरक़्क़ी है अभी तो वो अधूरी है
वो घर भी हैं, दवाई के जहाँ पैसे नहीं होते
इन्हें जो भी बनाते हैं वो हम तुम ही बनाते हैं
किसी मज़हब की साजिश में कभी बच्चे नहीं होते
सभी के पेट को रोटी, बदन पे कपड़े,सर पे छत
बहुत अच्छे हैं ये सपने मगर सच्चे नहीं होते
पसीने की सियाही से जो लिखते हैं इरादों को
'तुषार' उनके मुक़द्दर के सफ़े कोरे नहीं होते