भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बरसों बाद मिला है कोई / कैलाश गौतम

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:26, 4 जनवरी 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बरसों बाद मिला है कोई
कहाँ छिपाऊँ मैं,
केवल उसे निहारूँ या
फिर-फिर बतियाऊँ मैं ।

तनिक न बदला वही हूँ बहू
पहले जैसा है
बतियाने का लहज़ा भी
जैसा का तैसा है
सोच रहा
हँसते चेहरे को
और हँसाऊँ मैं ।

थोड़ी सी कुछ टूटन-जैसी
मन में झलक रही
बरसी नहीं घटा कजरारी
क्यारी नहीं बही
असमंजस में
घिरा हुआ हूँ
क्या बतलाऊँ मैं ।

बीते दिन भी इस मौक़े पर
ऐसे घेरे रहे,
फेर रहे हैं हाथ प्राण पर
मन से टेर रहे,
क्या-क्या फूँकूँ
एक साँस में
क्या-क्या गाऊँ मैं ।