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इश्तहार / केदारनाथ अग्रवाल
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इश्तहार के इस नए युग में
अख़बार में छपकर जीना पड़ता है
चाहे शास्त्रीजी हों
चाहे जनरल चौधरी
चाहे रक्षामंत्री चह्वाण
रचनाकाल: १७-१०-१९६५