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सप्ताह की कविता | शीर्षक : शीत लहर रचनाकार: विजेन्द्र |
शीत लहर चलती है पूरे उत्तर भारत में ठिठुर रहे जन-- जिनके वसन नहीं हैं तन पर बंदी हैं अपने कालचक्र में, फिर भी वे तन कर खड़े रहे अपने ही बल पर, विचलित आरत में होते हैं, रहते सावधान जीवन जीना है उनको अपने से ही, ऐसी व्याकुलता जगती है मन में, कहाँ खड़े हों पल भर धरती तपती है, जाड़े से भी बहतेरे मरते हैं, पीना है अमृत जल-- ऐसा सौभाग्य कहाँ मिलता है भद्रलोक को सुविधाएँ हैं सारी, कहाँ सताता पाला उनको, दाता उनका है, शास्त्र बताता है-- खरपतवारों के मध्य फूल कहाँ खिलता है । फिर हुई घोषणा गलन अभी और बढ़ेगी हड्डी-पसली टूटेगी निर्मम खाल कढ़ेगी ।