भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

परेशानी का आलम है परेशानी नहीं जाती  / चाँद शुक्ला हदियाबादी

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:46, 19 जनवरी 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

परेशानी का आलम है परेशानी नहीं जाती  
अब  अपनी शक्ल भी शीशे  में पहचानी नहीं जाती 
  
यहाँ आबाद  है  हर शैय खिलें हैं  फूल आँगन में 
मगर घर से हमारे क्यों ये  वीरानी नहीं जाती 

कभी इकरार  करतें हैं कभी तकरार  होती  है 
हमारी बात  कोई भी मगर मानी नहीं  जाती

मैं मन की बात करता हूँ वो अक्सर टाल जाते हैं
करूँ मैं लाख कोशिश उनकी  मनमानी नहीं जाती

वो मुझको तकते रहतें हैं मैं उनको तकता रहता हूँ  
कभी  दोनों तरफ से यह निगहबानी नहीं जाती

कभी मैं हँसता रहता हूँ कभी मैं रोता रहता हूँ  
करूँ मैं क्या मिरे दिल से पशेमानी नहीं जाती