भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आतंक / अम्बिका दत्त

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:18, 1 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अम्बिका दत्त |संग्रह=लोग जहाँ खड़े है / अम्बिका …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


जब, कुत्तों ने सूंघ लिया था
सन्नाटे में तैरता-खतरा
खड्-खड् बजने लगे थे
हवा के हिलने से
जमीन पर पड़े पत्ते
चलते-चलते/शरीरवत्
हो गई थी मेरी परछाई
गरदन घुमाकर पीछे देखते भी
घबरा रहा था मैं

बजबजा कर उतर पड़ा था-वह
शाम को ही - कस्बे के बाजार पर
उदास सी सिमट गई रोशनी
बिजली के खम्भों के आस-पास
तब-अपने घर के किवाड़ बन्द किये
पीली लालटेन के कन्धों से
मैं अकेला ढो रहा था
बहुत सारा अँधेरा
अकेला था - मैं नितान्त अकेला।