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बात / कल्याणसिंह राजावत
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थे जानौ अर जाणा म्हे ही, थारे म्हारे कितरी बात
कुण कुण ने दयां साफ़ सफाई, जीतरा मूंडा उतरी बात !
दो हिवङा री हेत हथाई, जणा जणा री चढ़े जबान
सळ नै सळ ही रेवण दयो, अब तो सारे बिखरी बात !
प्रीत रीत पथ मीत देखता और देखता हंस बतलाण
लोगा रे बधगी अबखाई , म्हे तो जाणा इतरी बात !
थांरे खातर तन मन वारा, धन संपत सू दे सनमान
पण थांरी नासमझी सू ही , बीच बजारा बिकरी बात !
गळी गळी में बेळ कुबेला, आणू जाणू है निरसार
समझा हाँ पण समझा कोनी, आ तो म्हारे नितरी बात !
मन में के मजबून देह रे , दरपण में आज्यावे सार
ओले छाने बात करा अर चौड़े धाडे दिखरी बात !
थांरी नां सू हुवे उदासी, थांरी हाँ , सू हरख घनो
थांरे निरखण री निजरां सू नखरा कर कर निखरी बात !