भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शहर-2 / अम्बिका दत्त

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:36, 2 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अम्बिका दत्त |संग्रह=लोग जहाँ खड़े है / अम्बिका …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


गजब की फुर्ती है - इस शहर में
कि दिन !
सड़को पे सरपट दौड़ा करता है
गजब की आराम तलबी है - इस शहर में
हर शाम !
फुटपाथ पर हो पसर जाती है
बड़ी अव्यवस्था है - इस शहर में
यहाँ हर रात ! भटक जाती है
मेरी समझ में नही आता
यह शहर है - या सर्कस का खेमा ?
यहाँ हर रोशनी
लैम्प पोस्ट पर औंधी लटक जाती है
पर सबसे अजीब बात तो यह है मेरे दोस्त !
कि मैंने उस शहर को
कभी भी/
सुबह की अंगड़ाई लेते हुए नही देखा।